Header Ads Widget

Responsive Advertisement

Ticker

6/recent/ticker-posts

કિરાડું મંદિરનું રહસ્ય

कीराडु मंदिर का रहस्य.....

इस स्थान की रेत दिन में जितनी शांत दिखाती है, सूरज ढलने के साथ ही ये ख़ामोशी उतनी ही सिहरन पैदा करती है | ऐसी ही ख़ामोशी को समेटे है राजस्थान का एक जिला बाड़मेर | बहुत समय तक गुमनामी की चादर लपेटे यह जिला अब राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन रहा है जिसकी वजह है किराडू का मंदिर ! बाड़मेर में एक जगह है किराडू |
किराडू के मंदिर अपने अद्भुत शिल्प-सौन्दर्य और अपने एक लोक-प्रचलित श्राप के कथानक से, आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों को न केवल स्तब्ध कर देते हैं बल्कि उनके मन में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के लिए कौतूहल भी जगाते हैं | “राजस्थान समाचार” की माने तो इसे मंदिरों का शहर या “राजस्थान का खजुराहो” भी कहा जाता है | किराडू मुख्यतः पांच मंदिरों की एक भव्य श्रंखला है | जिसमे से एक भगवन विष्णु का है बाकी भगवन शिव के हैं |

किराडू का वैभव : जिन्होंने बाड़मेर को घूमा है और इन मदिरों को देखा है वो जानते है कि इन मंदिरों को देखना कितना शानदार अनुभव है जो अपने ऐश्वर्य और वैभव की कहानी स्वयं समेटे हुए है | इससे पहले किराड़ कोट के नाम से प्रसिद्ध ये जगह मूलतः किराड़ वंश के राजपूतों द्वारा बसाई गयी थी | छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच अपने ऐश्वर्य-शाली वैभव के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा ये शहर उस समय विदेशी लुटेरों के लिए एक किंवदंती के रूप में प्रसिद्ध था | किराडू पर शासन करने वाले राजपूत दरअसल चालुक्यों के सामंत थे | चालुक्य वंशीय राजाओं का शासन उस समय सौराष्ट्र और गुजरात क्षेत्र में था यही वजह थी कि किराडू पर उस समय गुजराती संस्कृति कि स्पष्ट छाप थी जो आज भी दिखाई देती है |

मंदिर का श्राप : ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में किराडू की चमक फिर से चकाचौंध पैदा करती है जब परमार वंशीय राजा सोमेश्वर ने किराडू की चौतरफा उन्नति के लिए असाधारण पुरुषार्थ दिखाया और किराडू के विपुल वैभव को इतिहास में समेटा | इतिहासकारों का कहना है की इसके बाद तेरहँवी चौदहवीं शताब्दी में उन्मत्त तुर्क लुटेरों ने इस पुरे क्षेत्र को बहुत ही बर्बर तरीके से लूटा और रौंदा लेकिन क्षेत्रीय लोगो की बातों पर विशस करें तो कहानी कुछ और ही नज़र आती है | वो एक श्राप की बात करते हैं | एक ऐसा श्राप जिसने पुरे क्षेत्र को वीरान बना दिया |

अनुश्रति बताती है कि बारहवीं शताब्दी के आस-पास ही किसी समय एक ऋषि अपने शिष्यों के साथ यहाँ आये, क्षेत्रीय लोगों ने उनका स्वागत सत्कार किया | कुछ समय बाद ऋषि इस क्षेत्र का अकेले ही भ्रमण करने निकले | उनके शिष्य गण वहीँ ठहर गये | थोड़े समय बाद ही वहाँ एक भयंकर बीमारी का प्रकोप हुआ जिससे उनके शिष्यों की हालत ख़राब हो गयी | लेकिन किसी भी ग्राम वासी ने उनके शिष्यों की देखभाल या सेवा-सुश्रुषा नहीं की सिवाय एक कुम्हारिन के | उस बेचारी निर्धन वृद्धा से जितना बन पड़ा उसने किया |

दैव योग से वो ऋषि उसी समय वहाँ लौटे वहाँ अपने शिष्यों को अत्यंत चिंताजनक स्थिति में देख कर अचंभित हुए लेकिन स्थिति समझते उन्हें देर नहीं लगी इसके साथ ही उन्हें वहाँ के क्षेत्रवासियों की संवेदनहीनता पर भयंकर क्रोध आया | इसी क्रोध में उन्होंने उन क्षेत्रवासियों को श्राप दिया कि “इस भयंकर आपदा में भी मेरे शिष्यों की हालत देखकर तुम्हारा ह्रदय द्रवित नहीं हुआ, पाषाणवत (पत्थर के समान) बना रहा, जाओ तुम सब भी उसी को प्राप्त हो और पाषाण बन जाओ” उसके बाद उन्होंने उस वृद्धा को भी आदेश दिया कि सूर्यास्त के पहले वो इस जगह को छोड़ दे अन्यथा वो भी पाषाण-प्रतिमा बन जायेगी | उन्होंने उसे ये निर्देश भी दिया कि जाते समय वो पलटकर (पीछे मुड़ कर) एक बार भी नहीं देखेगी अन्यथा पछताएगी |श वो वृद्धा तुरंत अपने घर की ओर भागी | ऋषि भी अपने शिष्यों समेत वहाँ से लौट गए | लेकिन वो वृद्धा अपने सामान के साथ जब वो स्थान छोड़ने लगी तो उसके मन में ऋषि के श्राप के प्रति संदेह पैदा हुआ और उसे अपने उस स्थान के प्रति मोह भी उत्पन्न हुआ और फिर उसने पलटकर पीछे देखा |और तुरंत ही वो पाषाण-प्रतिमा बन गयी | बताते हैं कि पास के सिंहणी गाँव में उसकी पाषाण-प्रतिमा देखी भी जा सकती है | तब से वो श्राप आज भी प्रचलित है जिससे आज भी कोई सूर्यास्त के बाद वहाँ रुकने की हिम्मत नहीं जुटा पाता |

भारत वर्ष का गौरव : श्राप की कथा रहस्य-प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित करती है वो उनमे उत्कंठा जगाती है कि आओ मुझे खोजो और इतिहास को महसूस करो किन्तु श्राप की कथा से इतर किराडू के मंदिरों का वास्तु-सौन्दर्य और भव्यता अद्भुत है दैव-निर्मित होने का आभास दिलाने वाली प्रतिमाये, स्तम्भ, मण्डप, और गर्भ-गृह न केवल इसे राजस्थान के खजुराहो की उपमा से संवारती हैं बल्कि भारत-वर्ष के गौरव-शाली अतीत की भी झलकियाँ दिखाती हैं |
रहस्यमय समूह भारत-वर्ष की केंद्र सरकार और राजस्थान की राज्य सरकार से ये निवेदन करता है कि वो भारत-वर्ष के ऐसे गौरव-शाली धरोहरों का निरंतर संरक्षण एवं संवर्धन करे |
 
 कहते है सूर्यास्त के बाद इस मंदिर में 
जो कोई जाता है वह पत्थर का बन जाता है ...

भारत में अपनी सुंदरता के लिए
 जाना जाने वाला बाड़मेर जिले का किराडू मंदिर 
पिछले 900 सालों से है वीरान है। 

इसकी शिल्प कला ऐसी है कि इसका दूसरा नाम ही "राजस्थान का खजुराहो" पड़ गया। 
खजुराहो मंदिर से तुलना ने इस मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए। लेकिन इसके बाद भी पिछले 900 सालों  से ये मंदिर वीरान है। 

मंदिर में दिन में तो कुछ लोग दिख भी जाते हैं, 
लेकिन शाम ढलते ही यहां सन्नाटा छा जाता है। 
कहते हैं जो भी व्यक्ति यहां रात में ठहरता है वो पत्थर का बन जाता है। ये मान्यता यहां सालों से चली आ रही है और यही कारण है कि कोई भी यहां रात को रुकने की हिम्मत नहीं करता।

वास्तव में ऐसा कुछ नही है, की इस मंदिर में रात भर रुकने से पत्थर का बन जाता हो

जिस तरह असीरगढ़, भानगढ़ आदि विचित्र शक्तियों
जैसे अश्वथामा आदि की पूजा का केन्द्र हो सकते है
उसी तरह बाड़मेर का किराड़ू मंदिर भी होगा
जहां पूजापाठ में विघ्न न् पड़े
इस कारण इस शहर को पहले तो उजाड़ा गया
बाद में यह मंदिर इतना वीरान कर दिया गया
की इसका इतिहास ही गायब हो गया
अपवाहों की माया रच दी सो अलग

भारत को अपनी उन्नति के लिए ऐसे मंदिरो को जागृत करने की जरूरत है.

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો

0 ટિપ્પણીઓ